
विवेकानंद कुशवाहा


नीतीश कुमार के लिए लड़ने वाले लोग जमीन पर धरना दे रहे हैं और धूर्त पावर ब्रोकर लोग जदयू का टिकट बांट रहे हैं। मीडिया के जरिये माहौल बना दिया गया कि नीतीश कुमार ने संजय को डांटा, ऐसा संदेश गया लोगों के बीच कि शेर बूढ़ा है तो क्या, शेर है।
हमलोगों का भी थोड़ा दोष है इसमें, पर क्या किसी ने संजय को डांटते हुए नीतीश कुमार को देखा? खबर कहां से आयी मीडिया के पास? नीतीश कुमार का दिमाग सही से काम कर रहा होता तो उपेंद्र कुशवाहा को पंचायत के लिए दिल्ली जाना पड़ता?
असल में पावर ब्रोकर का कोई पावर सीज नहीं हुआ है। दुर्भाग्य है कि अभी जदयू के जिन कुर्मी नेताओं को सबसे ज्यादा खुल कर सामने आना चाहिए था। वह खुद एक-दूसरे की जड़ खोद रहे हैं। संतोष कुशवाहा ने बिल्कुल सही निर्णय लिया, नहीं लेते तो यह लोग मिलकर उनकी राजनीति को समाप्त कर देते।
अगर चुनाव से पूर्व नीतीश कुमार खुलकर मीडिया के सामने आकर अपनी बात नहीं रखते हैं, तो समझ लीजिए कि पावर ब्रोकर मीडिया के सहारे उनके बारे में उल्टी-सीधी कहानी खुद प्लांट कर रहा है, ताकि आपको लगे कि आपका नेता तो अभी भी इतना पावरफुल है कि सबको देख लेगा।
अगर NDA में उपेंद्र कुशवाहा की इच्छा की अनदेखी होती है, तो समझिए कि यह भी सोची-समझी रणनीति के तहत हो रहा है। हालांकि, मैं साफ कह चुका हूं कि उपेंद्र जी को परिवार नहीं, बल्कि अपनी पार्टी के वर्कर को टिकट देना चाहिए। अगर परिवार को टिकट देते हैं, तो यह उनका निजी विषय होगा और फिर उनके प्रति मुझ जैसे की कोई सहानुभूति नहीं होगी।
हां, जो लोग जदयू के असली स्टेकहोल्डर हैं, अगर वे पावर ब्रोकर का पावर नहीं सीज कर पा रहे, तो समझ लीजिए कि आपका ही पावर सीज हो चुका है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।


