
उन्होंने आदिवासी समाज के लिए वो सब कुछ किया जो एक सच्चे आदिवासी को करना चाहिए


रायपुर : बाबा कार्तिक उरांव आदिवासी समाज के महानायक थे, विपरीत परिस्थितियों में भी अपने दृढ संकल्प के बलबूते न सिर्फ उन्होंने खुद को बुलंदियों पर पहुंचाया, बल्कि आदिवासी समाज के उत्थान के लिए आजीवन संघर्ष रहे।
वे कट्टर ईमानदार, देशभक्त और आदिवासी समाज के उन्नायक थे। ये बातें बुधवार को बीसीसीएल के स्वतंत्र निदेशक और भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ अरुण उरांव ने कहीं। वे जनजाति सुरक्षा मंच की ओर से रायपुर में आयोजित बाबा कार्तिक उरांव शताब्दी जयंती समारोह में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि जब वे विदेश में सेवाएं दे रहे थे तो उस समय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु उन्हें स्वदेश लेकर आए। उन्होंने कहा कि आपकी प्रतिभा का सदुपयोग देश में होना चाहिए, विदेश में नहीं। अपनी किताब में बाबा कार्तिक उरांव ने देश में आजादी से पहले और आजादी के 20 वर्ष बाद कैसे आदिवासी समाज पिछड़ा रह गया इसे पूरे विस्तार से लिखा।
जब उनकी कलम चली तो उसमें सत्ता को लेकर कोई डर या भय नहीं था। जो एक सच्चा आदिवासी करता है, और जो एक सच्चे आदिवासी को करना चाहिए, उन्होंने वो किया। उन्होंने ये बात लिखी कि सरकारी नौकरी में देश के आदिवासियों की कितनी भागीदारी है। उन्होंने साफ लिखा कि कैसे आदिवासी और आदिवासी से इसाई बने लोगों की सरकारी नौकरियों में भागीदारी कितनी है और उसमें कितना अंतर है।
उन्होंने इसे 1970 में लिखा था और आज भी स्थिति में कोई खास अंतर नहीं आया है। बाबा ने डाटा के साथ, स्टैटिटिक्स के साथ कैसे आदिवासी समाज पिछड़ा रह गया, और सरकारें आयीं और गयीं इसे विस्तार से लिखा। उस समय कांग्रेस का राज था। मैं 50 और 60 के दशक की बात कर रहा हूं। बाबा कार्तिक उरांव गुमला के एक छोटे से गांव में जन्में थे, उनके मां-बाप किसान और निरक्षर थे, लेकिन उस अवरोध और रूकावट को भी वे लांघ गए।विदेश जाकर अपनी ताकत के बलबूते इंजीनियरिंग की उँची शिक्षा हासिल की।
उन्होंने कुछ साल सिविल इंजीनियर के रूप में काम किया और उनका स्पेशियालाइजेशन स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग में था। जयपाल सिंह मुंडा तो चर्च के समर्थन से विदेश गए थे, पर कार्तिक उरांव अपने बूते विदेश गए और तमाम डिग्रियां हासिल की। अपनी कमाई से उन्होंने पढ़ाई की। वे दिन में काम करते और रात को पढ़ाई करते। उन्होंने स्ट्रक्चरल इंजीनियिरंग की डिग्री इंग्लैंड, अमेरिका और अन्य देशों से ली थी।
उनके पास इंजीनियरिंग की 11 डिग्रियां थीं। आज अक्सर आदिवासियों को कहा जाता है कि वे आरक्षण से पढ़ते हैं, तो उस समय उनको कौन सा आरक्षण मिला था। जब वे अपने बलबूते इस तरह की पढ़ाई कर सकते हैं तो आप लोग तो रायपुर के बेहतरीन स्कूल में पढ़ते हैं, आपको तो और आगे जाना चाहिए। वो कट्टर ईमानदार थे। विदेश से लौटने के बाद वो एचईसी में इंजीनियर नियुक्त हुए।
नौकरी के दौरान उन्हें महसूस हुआ कि मेरी सारी प्रतिभा उस समय किसी काम की नहीं जब लाखों आदिवासी भूखे मर रहे हों, इसके बाद वे आदिवासियों के उत्थान का सपना लेकर राजनीति में आए।
आदिवासी विकास परिषद का संविधान पढ़िए, आपको महसूस होगा। वे ईमानदारी से जिए और समाज के लिए ईमानदारी से काम किया। वे अपने समाज के लिए जीने और मरने का संदेश देकर गए। जिनको आप चुन रहे हैं चाहे वो मुखिया हो या सांसद, जब तक समाज को उनके जैसा लीडर नहीं मिलेगा जो उनके आदर्शों पर चले तब तक आदिवासी समाज आगे नहीं बढ़ेगा।



