Home Jharkhand शरद पूर्णिमा 6 को, लक्ष्मी की आराधना करनेवाले भक्तों पर बरसेगी मां की कृपा

शरद पूर्णिमा 6 को, लक्ष्मी की आराधना करनेवाले भक्तों पर बरसेगी मां की कृपा

by Dayanand Roy

मान्यता है कि इस रात्रि को देवी लक्ष्मी धरती पर भ्रमण करती हैं और जो व्यक्ति जागरण करता है तथा मां लक्ष्मी की आराधना करता है, उस पर मां की विशेष कृपा होती है

रांची : मां लक्ष्मी की आराधना का पूर्व शरद पूर्णिमा 6 अक्टूबर को मनायी जायेगी। हिन्दू पंचांग के अनुसार इसे अत्यंत पवित्र और फलदायक रात्रि माना जाता है।शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा, रास पूर्णिमा तथा लक्ष्मी जयन्ती के नाम से भी जाना जाता है।

मान्यता है कि इस रात्रि को देवी लक्ष्मी धरती पर भ्रमण करती हैं और जो व्यक्ति जागरण करता है तथा मां लक्ष्मी की आराधना करता है, उस पर मां की विशेष कृपा होती है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने इसी रात्रि को वृंदावन में गोपियों के साथ महारास किया था, जो भक्ति, प्रेम और अध्यात्म की पराकाष्ठा मानी जाती है।यह तिथि देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए विशेष मानी जाती है।

इस दिन व्रत रखने, रात्रि जागरण करने और खीर का सेवन करने से सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। लक्ष्मी पूजन करने से दरिद्रता दूर होती है। शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है और उसकी किरणों से औषधीय गुणों का संचार होता है। इसीलिए खीर को चांदनी में रखने की परंपरा है ताकि वह प्राकृतिक ऊर्जा से युक्त होकर स्वास्थ्यवर्धक बने।

इस खीर को अमृत के समान माना जाता है कहते हैं कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की रोशनी में खीर रखकर खाने से इंसान का भाग्योदय होता है और रोग बीमारियों से मुक्ति मिलती है।कई क्षेत्रों में यह रात्रि प्रेम और भक्ति की प्रतीक मानी जाती है। उत्तर भारत में जगह-जगह कीर्तन, रासलीला, कथा एवं भजन संध्याओं का आयोजन होता है। इस दिन व्रती व्यक्ति दिनभर उपवास रखता है।

रात्रि को देवी लक्ष्मी का पूजन कर घर में दीप जलाए जाते हैं।खीर बनाकर उसे चांदनी में रखकर भगवान को अर्पित किया जाता है।रात्रि जागरण और भजन-कीर्तन का आयोजन होता है। शरद पूर्णिमा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय परंपरा, विज्ञान और संस्कृति का संगम है। यह दिन आत्मिक शुद्धि, सामाजिक समरसता और भक्ति के भाव को पुष्ट करता है।

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