
रांची : लेखकों के आराध्य चित्रगुप्त की पूजा और भाई दूज गुरूवार को मनाया जायेगा। आचार्य मनोज पांडेय ने बताया कि गुरूवार को कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को चित्रगुप्त पूजा के साथ भाई-दूज भी मनाया जायेगा।


गोधन के दिन आयुष्मान और सर्वार्थ सिद्धि योग का शुभ संयोग है। उन्होंने कहा कि भाईदूज की पूजा दिनभर होगी। गौरतलब है कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हर साल भगवान चित्रगुप्त की पूजा कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को होती है, जिसे भाई दूज भी कहते हैं।
इस दिन भगवान चित्रगुप्त की पूजा की जाती है, जो कलम-दावत की सहायता से समस्त जीवों के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं।
हालांकि इसे मास्यधार पूजा के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि कलम और दावत को मास्यधार पूजा कहते हैं। हिंदू धर्म में यह पर्व विशेष रूप से कायस्थ समाज के लोगों द्वारा मनाया जाता है।
पूजा मुहूर्त: हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि 22 अक्टूबर को रात 8 बजकर 16 मिनट पर शुरू होगी। वहीं इस तिथि का समापन 23 अक्टूबर को रात 10 बजकर 46 मिनट पर होने जा रहा है। ऐसे में चित्रगुप्त पूजा गुरुवार 23 अक्टूबर को की जाएगी। इस दिन पूजा का मुहूर्त कुछ इस प्रकार रहने वाला है।
मुहूर्त: दोपहर 1 बजकर 13 मिनट से दोपहर 3 बजकर 28 मिनट तक
पूजा विधि: कहा जाता है कि इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और पूजा स्थल को साफ करें। एक लकड़ी की चौकी पर पीले रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर भगवान चित्रगुप्त की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें। भगवान चित्रगुप्त की मूर्ति के सामने घी का दीपक जलाएं। साथ ही पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, चीनी) बनाएं और भगवान को अर्पित करें। हल्दी, चंदन, फूल, फल, मिठाई और भोग भी चढ़ाएं। इस पूजन की खास विशेषता है। इस दिन पूजा में कलम, दवात और सफेद कागज जरूर रखें। कागज पर हल्दी से ‘श्री गणेशाय नमः’ लिखें और उसी कलम से ‘ॐ चित्रगुप्ताय नमः’ मंत्र 11 बार लिखें। हालांकि पूजा के बाद कलम-दवात को सामान्य कामों में प्रयोग ना करें, बल्कि इसे संभालकर रखने की परंपरा है। माना जाता है कि भगवान चित्रगुप्त को पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखने वाले देवता है। खासतौर पर यह पूजा ज्ञान और बुद्धि के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। जबकि कुछ लोग व्यवसाय में सफलता के लिए भी इस दिन चित्रगुप्त जी की पूजा करते हैं।


