Home Editor's Picks नगर निकायों में ओबीसी को 14 प्रतिशत तक आरक्षण, चुनाव का रास्ता साफ

नगर निकायों में ओबीसी को 14 प्रतिशत तक आरक्षण, चुनाव का रास्ता साफ

by Dayanand Roy

कैबिनेट ने ट्रिपल टेस्ट रिपोर्ट को दी मंजूरी

रांची :  झारखंड में नगर निकाय चुनावों के लिए आरक्षण की नई व्यवस्था को लेकर बड़ा फैसला लिया गया है। राज्य कैबिनेट ने पिछड़ा वर्ग आयोग की ट्रिपल टेस्ट रिपोर्ट को मंजूरी देते हुए नगर निकायों में सीटों के आरक्षण का नया ढांचा लागू करने का निर्णय किया है। इस निर्णय के बाद राज्य में स्थानीय निकायों में पिछड़े वर्ग और अनुसूचित जाति-जनजाति के प्रतिनिधित्व को मजबूत किया जाएगा। कैबिनेट की बैठक में कुल 24 प्रस्तावों को मंजूरी दी गयी।

सूत्रों के अनुसार, अब नगर निकायों की 36 प्रतिशत सीटें अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित होंगी। इसके अलावा, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को भी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करते हुए 14 प्रतिशत सीटें OBC वर्ग के लिए आरक्षित की गई हैं। इसका मतलब यह हुआ कि अब कुल 50 प्रतिशत तक सीटों पर आरक्षण लागू रहेगा। यह बदलाव पहले के नियमों में महत्वपूर्ण संशोधन के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि पहले ओबीसी वर्ग को नगर निकायों में विशेष प्रतिनिधित्व नहीं मिलता था।

राज्य कैबिनेट के निर्णय के बाद अब नगर निकायों में आरक्षित सीटों की अधिसूचना जल्द ही राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा जारी की जाएगी। इससे संबंधित सभी राजनीतिक दल, उम्मीदवार और नागरिक आरक्षित सीटों के विवरण के आधार पर अपनी रणनीति तय कर सकेंगे।

कॉलेज- यूनिवर्सिटी की महिला शिक्षकों-कर्मियो के साथ एकल पुरुष को अब 730 दिनों का चाइल्ड केयर लीव

राज्य सरकार के कर्मचारियों का डीए तीन प्रतिशत बढ़ा

थानों के लिए 628 चार पहिया वाहन और 849 दो पहिया वाहन खरीदे जाएंगे

झारखंड कैबिनेट ने राज्य के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के शिक्षकों और कर्मचारियों के लिए चाइल्ड केयर लीव लागू करने का बड़ा फैसला लिया है। नई व्यवस्था के तहत अब न केवल महिला कर्मी, बल्कि एकल पुरुष कर्मचारी भी अपने सेवा अवधि के दौरान 730 दिनों तक चाइल्ड केयर लीव का लाभ उठा सकेंगे। यह कदम शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों के पारिवारिक जीवन और पेशेवर जिम्मेदारियों में संतुलन बनाने की दिशा में राज्य सरकार की अहम पहल माना जा रहा है।

कैबिनेट ने इसके अलावा कई महत्वपूर्ण फैसले भी लिए हैं। सातवां वेतनमान प्राप्त सरकारी कर्मियों और पेंशनधारियों के लिए 1 जुलाई 2025 से 3% डीए वृद्धि की मंजूरी दी गई, जिससे महंगाई भत्ता 55% से बढ़ाकर 58% हो जाएगा। वहीं, 480 सरकारी विद्यालयों में विज्ञान प्रयोगशालाओं की स्थापना की स्वीकृति भी दी गई।

राज्य आकस्मिकता निधि से 166 करोड़ रुपए आपदा प्रबंधन योजना के तहत देने, राजकीय महिला पॉलिटेक्निक जमशेदपुर में स्टेट ऑफ़ द आर्ट संस्थान के रूप में नए भवन के निर्माण के लिए 55 करोड़ रुपए, और गोड्डा जिला बराज योजना के लिए 31 करोड़ रुपए की मंजूरी भी दी गई।

इसके अतिरिक्त राज्य के सभी थानों में विधि व्यवस्था और पेट्रोलिंग के लिए 628 चार पहिया वाहन और 849 दो पहिया वाहन खरीदने के लिए 78 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए हैं।

इन पहलों से न केवल शिक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में सुधार होगा, बल्कि कर्मचारियों और समाज को लाभ पहुंचाने में भी मदद मिलेगी।

झारखंड में सारंडा जंगल का 314 वर्ग किमी का इलाका बनेगा अभयारण्य

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार झारखंड सरकार ने राज्य के कोल्हान प्रमंडल स्थित सारंडा जंगल के 314 वर्ग किलोमीटर इलाके को अभयारण्य घोषित करने का निर्णय लिया है। मंगलवार देर शाम मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में आयोजित कैबिनेट की बैठक में इससे संबंधित वन एवं पर्यावरण विभाग के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी है।

बैठक के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मीडिया से बात करते हुए कहा,  “सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार सारंडा का 314 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र अभयारण्य घोषित किया जाएगा। इस जंगल में रहने वाले आदिवासियों, मूलवासियों के जीवन पर इससे कोई असर नहीं पड़ेगा। वे पहले की तरह सामान्य रूप से यहां जीवन बसर कर सकेंगे।”

8 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को एक सप्ताह में सारंडा को अभयारण्य घोषित करने का निर्णय लेने का निर्देश दिया था। इस मुद्दे पर 15 अक्टूबर यानी बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में फिर से सुनवाई होनी है, जहां राज्य सरकार की ओर से अदालत के निर्देश के अनुपालन का एफिडेविट दाखिल किया जाएगा। प्रस्तावित सारंडा अभयारण्य के एक किलोमीटर परिधि का क्षेत्र इको सेंसेटिव जोन घोषित किया जाएगा।

सारंडा जंगल का कुल क्षेत्रफल 850 वर्ग किलोमीटर है। इसमें से 314 वर्ग किलोमीटर यानी 36 प्रतिशत इलाका अभयारण्य के रूप में अधिसूचित जाएगा। जिन इलाकों को अभयारण्य के रूप में चिन्हित किया जाएगा, वहां किसी तरह का खनन कार्य नहीं हो सकेगा। अभयारण्य के बाहर के वन क्षेत्रों में वैध रूप से आवंटित पट्टाधारक खनिजों का उत्खनन कर सकेंगे। यहां सबसे ज्यादा इलाके में सेल की आयरन ओर की खदानें हैं, जो वर्षों से संचालित हो रही हैं। ये खदानें पूर्ववत चलती रहेंगी।

सुप्रीम कोर्ट ने पहले 57,519.41 हेक्टेयर क्षेत्र को 8 अक्टूबर 2025 तक अभयारण्य घोषित करने का आदेश दिया था। राज्य सरकार ने इसपर दलील दी कि इतने बड़े क्षेत्र को अभयारण्य घोषित करने से कई खनन क्षेत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। राज्य सरकार ने यह भी कहा कि वह पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन वर्षों से जो खनन कार्य कानूनी रूप से चल रहे हैं, उन्हें बंद करने से देश-राज्य की अर्थव्यवस्था और रोजगार पर गंभीर असर पड़ेगा। राज्य सरकार के तर्क को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 31,468.25 हेक्टेयर यानी 314 वर्ग किमी को अभयारण्य घोषित करने की अनुमति दे दी।

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